Saraswati Chalisa PDF |श्री सरस्वती चालीसा

Saraswati Chalisa PDF: सरस्वती चालीसा, एक प्रार्थना है जो हमारे प्यारे सरस्वती माँ को समर्पित है। सरस्वती माँ, ज्ञान, शिक्षा और कला की देवी हैं। उनकी पूजा से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है और हमारी बुद्धि शुद्ध होती है।

Saraswati Chalisa PDF
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सरस्वती माँ की स्तुति: सरस्वती चालीसा की शुरुआत होती है सरस्वती माँ की स्तुति से। उसकी सुंदरता, उसकी महिमा, और उसके वरदान को हम स्तुति करते हैं। सरस्वती माँ को प्रणाम किया जाता है उनकी कृपा पाने के लिए।

2. ज्ञान की प्राप्ति की भक्ति: सरस्वती माँ के चरण स्पर्श से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। चालीसा में हम उनसे ये प्रार्थना करते हैं कि वे हमें बुद्धि और विवेक दें। उनकी कृपा से हमें शिक्षा में उन्नति और सफलता मिलती है।

3. बुद्धि और शक्ति की प्रार्थना: चालीसा में सरस्वती माँ से हमें बुद्धि और शक्ति की प्रार्थना होती है। उनके आशीर्वाद से हम अपने जीवन में समझदारी और साहस पाते हैं। हम उनसे ये प्रार्थना करते हैं कि वे हमें हर मुश्किल में सहायता दें।

4. विद्या का वरदान: सरस्वती चालीसा में सरस्वती माँ से विद्या का वरदान प्राप्त करने की प्रार्थना होती है। उनकी कृपा से हमें विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है जो हमें जीवन में उज्वल बनाता है।

5.सरस्वती माँ की कृपा: चालीसा में हम सरस्वती मां से उनकी कृपा और अनुग्रह की प्रार्थना करते हैं। उनके आशीर्वाद से हमें हर कार्य में सफलता मिलती है और हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं।

6.सरस्वती माँ की आरती: चालीसा के अंत में सरस्वती माँ की आरती होती है। हम उनकी आरती उतारते हैं और उनकी महिमा गाते हैं। इसका हमारा मन शुद्ध होता है और हमें सरस्वती मां की कृपा प्राप्त होती है। सरस्वती चालीसा पढ़कर हम सरस्वती माँ की शरण में आते हैं और उनकी कृपा को प्राप्त करते हैं। इससे हमारा जीवन ज्ञान, शिक्षा और कला परिपूर्ण हो जाता है। जय सरस्वती माँ!

जनक जननि पद्मरज।
निज मस्तक पर धरि ॥
बन्दौं मातु सरस्वती।
बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव।
महिमा अमित अनंतु॥
दुष्जनों के पाप को।
मातु तु ही अब हन्तु ॥

monk holding prayer beads across mountain
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॥ चालीसा ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुज धारी माता ।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥

जग में पाप बुद्धि जब होती ।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥

तब ही मातु का निज अवतारी ।
पाप हीन करती महतारी ॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामचरित जो रचे बनाई ।
आदि कवि की पदवी पाई ॥

कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।
केव कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता ।
तेहि न धरई चित माता ॥

राखु लाज जननि अब मेरी ।
विनय करउं भांति बहु तेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥

समर हजार पाँच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।
क्षण महु संहारे उन माता ॥

रक्त बीज से समरथ पापी ।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा ।
बारबार बिन वउं जगदंबा ॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा ।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई ।
रामचन्द्र बनवास कराई ॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा ।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी ।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित को मारन चाहे ।
कानन में घेरे मृग नाहे ॥

सागर मध्य पोत के भंजे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।
हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।
संशय इसमें करई न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें सत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी ।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥

Saraswati Chalisa PDF |श्री सरस्वती चालीसा

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॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव।

अन्धकार मम रूप ॥
डूबन से रक्षा करहु।

परूँ न मैं भव कूप ॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि।

सुनहु सरस्वती मातु ॥
राम सागर अधम को।

आश्रय तू ही देदातु ॥

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